मैं कैराना का काफ़िर ठहरा,.तुम इशरत सी भोलीभाली हो
मैं नारंग की मौत पर सन्नाटा,.तुम दादरी की रुदाली हो..
मैं अपनी जड़ों से विस्थापित,.तुम अमरबेल हरियाली हो
मैं असहिष्णु सा फूफा ठहरा,.तुम सेकुलरिज्म की साली हो ;
हम शिखर पर जाके क्या करेंगे उस्ताद….
जब हम पर्वत-भारत के पाँव में डायनामाइट लगा रहे हैं
क्या बिगाड़ा है हमारा हिमराज-भारत
तुम जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद क्यों करते हैं उस्ताद..
बोलिये..जुबां खोलिए…शेरों में कहिये…
प्रण के साथ क्यों नहीं बोलते….
देखिये ये क्या कर रहे हैं आपके…..
जैसे करते हैं वाम-वाम वाले कुछ स्वार्थी तत्त्व
तुम क्यों करते हैं जब-तब दादरी-कांड पर पुरस्कार लौटाने की नंगई खेल
बताएं उस्ताद…बताएं…मुँह आपके क्यों नहीं खुलते….
हम बकरा काटें, बकरा खाएँ
गोमाता को काटें, गोमाता के माँस भक्षण करें
मुर्गे उड़ाएँ, दारू में पार लगे तो सिर डुबाएं
क्या हम धरती माँ के ऐसे ही संतान हैं
ग़ज़लों में, कविताओं में आदर्श की बात करें
लेकिन जब कैराना की बात होवे तो नकार जाएं
कैराना को कश्मीर बनाने पर क्यों तुले हैं उस्ताद…
हम नहीं चाहते कि हम भारतीय हिन्दु-मुस्लिम कभी अलग दिखें
हम भारत मैया की संतान हैं, हमारे खून एक हैं
हम चीनियों खातिर कम्युनिष्ट थोड़े बने हैं
जिसने हमें सन् बासठ में दुलत्ती दी
हमें राजनीति की रोटियाँ सेंकवाने के लिए क्यों मजबूर कर रहे हैं
बोलिए..कुछ तो बोलिए उस्ताद…
देखिये..हमारे ही परिवार के कन्हैया-खालिद को इन वामपंथियों ने
क्या पिला दिये कि ये पगला गए, ये तो पगला गए,
लेकिन औरों को क्यों पागल बना रहे हैं उस्ताद
हम भारतीय हैं, हमारी रगों में भारती बहती हैं
हमारे हवा-पानी-धूप सब भारती के हैं
हम सबका साथ सबका विकास के पक्षधर हैं
हम हिन्दू हैं, न मुस्लिम, न सिक्ख, न ईसाई..
हम बस भारतीय हैं, सवा सौ करोड़़….
हम पूजते हैं श्रीराम को, शंकर को, पार्वती को…
#विचारणीय।
“मन्दिर लगता आडंबर , और मदिरालय में खोए है ,”
“भूल गए कश्मीरी पंडित , और अफजल पे रोए है……..”
“इन्हें गोधरा नही दिखा , गुजरात दिखाई देता है ,”
“एक पक्ष के लोगों का , जज्बात दिखाई देता है……..”
“हिन्दू को गाली देने का , मौसम बना रहे है ये ,”
“धर्म सनातन पर हँसने को , फैशन बना रहे है ये…….”
“टीपू को सुल्तान मानकर , खुद को बेच कर फूल गए ,”
“और प्रताप की खुद्दारी की , घास की रोटी भूल गए…….”
“आतंकी की फाँसी इनको , अक्सर बहुत रुलाती है ,”
“गाय माँस के बिन भोजन की , थाली नही सुहाती है…….”
“होली आई तो पानी की , बर्बादी पर ये रोतेे है ,”
“रेन डाँस के नाम पर , बहते पानी से मुँह धोते है……..”
“दीवाली की जगमग से ही , इनकी आँखे डरती है ,”
“थर्टी फस्ट की आतिशबाजी , इनको क्यों नहीं अखरती है…….”
“देश विरोधी नारों को , ये आजादी बतलाते है ,”
“राष्ट्रप्रेम के नायक संघी , इनको नही सुहाते है……..”
“सात जन्म के पावन बंधन , इनको बहुत अखरते है ,”
“लिव इन वाले बदन के , आकर्षण में आहें भरते है…..”
“आज समय की धारा कहती , मर्यादा का मान रखो ,”
“मूल्यों वाला जीवन जी कर , दिल में हिन्दूस्तान रखो……..”
“भूल गया जो संस्कार , वो जीवन खरा नहीं रहता ,”
“जड़ से अगर जुदा हो जाए , तो पत्ता हरा नहीं रहता……..”
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