बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एकसेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे
चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब
जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के
साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल
गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ
की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया ।
चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से
मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित
मंदिर की रक्षा हो गयी ।
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत
क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य
सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार
सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ
मे
ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस
आना है ,यह समय सन् 1680 का था ।
बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के
गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के
माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल
अयोध्या आ
गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेरा डाला । ब्रहमकुंड वही जगह
जहां आजकल गुरुगोविंद सिंह
की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है।
बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के
गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े ।इन
वीरों कें सुनियोजित हमलों से
मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन
अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस
प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक
उसने अयोध्या पर
हमला करने की हिम्मत नहीं की।
औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम
जन्मभूमि पर आक्रमण किया । इस
भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं
की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त
से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप
नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने
उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर
दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध
है,और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है।
शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत
दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था ।
औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब
उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से
अक्षत,पुष्प और जल चढाती रहती थी.
नबाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ
अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के
राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच
आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में
गिरती रहीं।
लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है की
“ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और
मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने
की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने
काफिरों को जमीन नहीं सौंपी।
“लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62”
नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के
राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के
लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये।
परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर
नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं
की शक्ति क्षीण होने लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं
और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस
संग्राम मे भीती,हंसवर,,मकरही,खजुरहट,दीयरा अमेठी के
राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर
चिमटाधारी साधुओं की सेना आ
मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और
उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।
मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने
पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार
डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा।
नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के
उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा
“इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ ।दो दिन
और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के
बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं
की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर
बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से
मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर
हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई
हानि नहीं पहुचाई।
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये
अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था।
हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और
औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस
बनाया । चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक
छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे
पुनः रामलला की स्थापना की गयी।
कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में
जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी।
सन 1857 की क्रांति मे बहादुर
शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के
साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर
18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के
पेड़ मे दोनों को एक
साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया ।
जब अंग्रेज़ो ने ये
देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक
स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़
को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया…
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार
का यह
एकमात्र प्रयास विफल हो गया …
अन्तिम बलिदान …
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम
सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं
अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और
विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
लेकिन २ नवम्बर १९९०
को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर
गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों
रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरकार ने
मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार
सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था।
४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे,
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने
इस्तीफा दिया।
लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर
को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर
के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक
मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं नपुंसकता के
कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे
हुए तम्बू में विराजमान हैं।
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त
पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे “एक विवादित
स्थल” कहता है।
सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज भी जन्मभूमि पर
अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने
देना चाहते हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें
नीचा दिखाया जा सके।
जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं
हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने
जन्मभूमि के उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन
नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस
की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू
समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण
उलझा हुआ है।
ये लेख पढ़कर जिन हिन्दुओं को शर्म नहीं आयी वो कृपया अपने घरों में
राम का नाम ना लें…अपने रिश्तेदारों से कह दें कि उनके मरने के बाद
कोई “राम नाम” का नारा भी नहीं लगाएं।
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