Suprem Kotha and सेक्युलरिज्म की आड़ में आक्रमण हो रहा है !


सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय विद्यालय की संस्कृत प्रार्थना के विरोध में एक याचिका दायर की गई है जिसमें इस प्रार्थना को सांप्रदायिक बताया गया है, अब विडंबना देखिए जिस सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना

असतोमा सद्गमय ।

तमसोमा ज्योतिर् गमय ।

मृत्योर्मामृतं गमय ॥

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ।।

(जिसका अर्थ है

असत्य से सत्य की ओर ले चलो,

अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो,

म्रत्यु से अनश्वरता की ओर ले चलो)

को संस्कृत में होने के कारण सांप्रदायिक बताकर उसके विरुद्ध अर्जी दी गयी है, उसी सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य है “यतो धर्मस्ततो जय:” जो महाभारत का श्लोक है, संस्कृत में है, और महाभारत में 11 बार आता है, जिसका अर्थ है “जहाँ धर्म है, वहीं विजय है”

अब यदि मात्र संस्कृत में होने के कारण केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना साम्प्रदायिक है, तो फिर संस्कृत में होने के कारण सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य साम्प्रदायिक कैसे नहीं हुआ ?

फिर तो सुप्रीम कोर्ट को उस प्रार्थना पर सुनवाई से पहले अपने ध्येय वाक्य पर ही सुनवाई करनी चहिये…..

संस्कृत भाषा भारत की प्राचीन परंपरा की विरासत है परंतु आज एक सुनियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत भारत व् भारतीय जनता को उसकी इसी परंपरा से काटने का और वंचित करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है,और इसके लिए सुप्रीमकोर्ट और न्यायालयों का कुटिलता पूर्वक दुरुपयोग हो रहा है,

कहते हैं कि यदि किसी देश का विनाश करना हो तो उसे उसकी परंपरा, उसकी जड़ों, उसकी संस्कृति से ही काट दो, ठीक इसी सिद्धांत का प्रयोग भारत में “धर्मनिरपेक्षता” और “संप्रदायिक” शब्दों की आड़ में खेला जा रहा है,

भारतीय संस्कृति से सम्बंधित प्रत्येक विषय को सांप्रदायिक बताकर समाज में प्रचलन से हटाने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं,

समस्या यह है कि भारत की अधिकांश जनता को अभी तक समझ ही नहीं आया है कि उनकी जड़ों पर, उनकी संस्कृति पर, उनकी परंपराओं पर, उनकी विरासत पर निरंतर सेक्युलरिज्म की आड़ में आक्रमण हो रहा है ,और भारत की जनता इससे अनभिज्ञ होकर प्रत्येक ऐसे आक्रमण के बाद भारतीय संस्कृति की पराजय और सफाये का स्वयं ही प्रफुल्लित होकर उत्सव मनाने बैठ जाती है।