नाराजगी को चरम की पराकाष्ठा पार कराने वाला है एक चाय वाला…!!!


सोनिया गांधी बहुते नाराज है,क्योंकि उनका खेल ख़त्म किया जा चूका है…!

वैसे तो १६ मई २०१४ के बाद से ही नाराज है लेकिन अब ज्यादा ए नाराज है…सोनिया पहले भी विपक्ष में बैठ चुकी है इसलिए यह प्रश्न तो बनता ही है की आखिर इस बार क्या अलग बात है,कि सोनिया नाराज है…?

अटलबिहारी बाजपेयी की जब सरकार थी तब विपक्ष में थी, लेकिन जलवा उनका बना हुआ था…तब कोई भी अंतर्राष्ट्रीय मेहमान भारत यात्रा पर आता था,वो सोनिया से बिना मिले नही जाता था और कुछ तो वहां उनके निवास में जाकर मिलते थे…पूर्व काल के आदर्शो, राजनैतिक आचरण और सदाचार को राजधर्म समझ कर, बाजपेयी जी ने,सत्ता चले जाने के बाद भी,सोनिया के महारानी पद की गरिमा पर बने रहने दिया था…यहां यह ध्यान देने वाली बात है की अंतर्राष्ट्रीय मेहमान किस से मिलेगा या नही मिलेगा, यह मेजबान राष्ट्र की सहमति से ही तय होता है और बाजपेयी जी अदूरदर्शीता में,महान बनने की बीमारी से ग्रस्त होकर,सोनिया को महामंडित होने दिया…!

सोनिया गांधी से अब कोई नही मिलता है और जहाँ तक मेरी जानकारी है भारत की नई सरकार का रुख देख कर अब कोई भी अंतर्राष्ट्रीय मेहमान, सोनिया से मिलने के लिए, भारतीय विदेश मंत्रालय को अपनी इच्छा प्रगट भी नही करता है…ये सोनिया के अंतर्राष्ट्रीय आभा मंडल का चीर हरण था…!

अंतर्राष्ट्रीय हस्ती के आभा मंडल के समाप्त होने से व्यथित हो कर,सोनिया बहुते नाराज है…!

पहले विपक्ष में थी,तब बेटा बोस्टन हवाई अड्डे पर अवैध डालर और नशीले पदार्थो के चक्कर में पकड़ा जाता था तो बाजपेयी जी सीधे अमेरिका के राष्ट्रपति को फोन कर के बेटे को छोड़ने का अनुग्रह करते थे और बेटा छूट जाता था…अब सोनिया भारत के प्रधानमंत्री को फोन ही नही कर सकती है और न ही कोई अवैधानिक कार्य करा सकती है…!

इससे उपजी हुयी ग्लानि से, सोनिया बहुते नाराज है…!

भारत की नई सरकार,सोनिया की किसी भी ज़िद पर ध्यान ही नही दे रही है और उन्हें भारत की सड़क पर साधारण भारतीय की तरह घूप में खड़ा होना पड़ रहा है…आज सोनिया १९६८ के बाद से,४७ साल बाद,एक आम भारतीयों की कतार में खड़ीं हो गई है…

एक साधारण नागरिक बन जाने के अपमान से,सोनिया बहुते नाराज है…!

नेशनलिस्ट सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नागालैंड (NSCN) से नई सरकार बिना किसी को हवा लगे,संधि कर लेती है और सोनिया को कानो कान खबर भी नही लगती है…ये ऐसी संधि है, जिस पर सोनिया,चाह कर भी, यह भी नही कह सकती है कि मनमोहन सरकार के काल से ही बात चीत चल रही थी और नई सरकार ने कुछ नया नही किया है…

बड़ी झुंझलाहट है,इस गोपनीयता से,सोनिया बहुते नाराज है…!

लेकिन इन सब बातो में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह संधि उनके’ क्रिशचन एवंगलिस्ट’ भूमिका पर बहुत बड़ी चोट है…भारत के उत्तरी पूर्व राज्यों को मिलाकर,’किंगडम ऑफ़ क्राइस्ट'(ईसा का राज्य,)बनाने की कोशिश में यह वेटिकन पोप की बहुत बड़ी हार है…शेष भारत के लोग शायद न समझ पाये लेकिन यह एक ऐसी हकीकत है जिसकी जानकारी तीन दशको से भारत के राज्य तंत्र को मालूम थी लेकिन सोनिया गांधी के प्रभाव से,चर्च को,भारत में ईसाई धर्म के प्रसार की,बिना रोक टोक के, अनाधिकारिक छूट थी…

ये उनकी ईसाइयत के प्रसार को बढ़ने देने की भूमिका पर सीधा आक्रमण और उनके रोमन कैथोलिक भावना का तिरस्कार था…उनके चर्च और रोमन कैथोलिक आत्मा का इस तरह के तिरस्कार से,सोनिया बहुते नाराज है…!

सोनिया को नाराज और होना है इसलिए उनका सारा रोना पूरा देख लीजिये…यहाँ एक बात याद रखिये की जब जड़ गहरी हो तो तेज़ाब डाला जाता है(चाणक्य ने मट्ठा डाला था)और जड़ धीरे धीरे सुखाई जाती है… हाँ,पेड़ काटा भी जा सकता है लेकिन यह भारत देश है,जहाँ भावना बेन बड़ी जल्दी आहत होती है…

जल्दी बाजी में ज्ञानी, अज्ञानी,प्रकृति प्रेमियों के उस पेड़ से लिपट जाने का खतरा बना रहता है उन्हें पूर्व में किये हुए नुकसान और भविष्य में होने वाले नुकसान से मतलब नही रहता है,वो तो सीधे लकडहारे और कुल्हाड़ी पर ऊँगली उठा देते है…!

भारत में ऐसे प्रकृति प्रेमी अभी काफी है और ज्यादातर उस पेड़ की छाँव में ही बैठते हैं…

लेकिन ये मुफ्तखोर हराम की छांव में बैठने वाले प्रकृति प्रेमी आंख नाक कान सब कुछ खोल सुन समझ ले… अभी आने वाले समय में इस नाराजगी को चरम की पराकाष्ठा पार कराने वाला है एक चाय वाला…!!!

What Is SATSANG Acording to VEDA and UpaniShad ? By : Sant Bhatt


What Is SATSANG Acording to VEDA and UpaniShad ? By : Sant

Some Times : By Sant (Sanji Bhatt )

Mere physical association with a teacher can’t be considered satsang as such. Satsang in the real sense of the term is a diligent involvement on the part of students in their quest for knowledge and an equally diligent involvement of the teacher who guides the search.

Every Upanishad is the product of a satsang between teacher and student. Every Upanishad is in the form of questions from students and answers from a teacher. It is a conversation between a learned man of realisation and his disciples who have come to him in search of the goal of life. Satsang is an important means employed in the Upanishads, the pillars on which Hinduism rests.

Satsang means association with the wise who know ‘sat’, or reality. Here, one is introduced to oneself, the Eternal, through a teacher and that process of Self-introduction is called satsang. After the initial exposure to Vedantic teaching through a teacher, even reading a book becomes satsang.

A Conversation between two human being where one asks a inquisitive question and the other one answers a logical, rational arguments with scientific base and logic is A Satsang.

Why Popular “ Chanakya “ Serial on TV Abruptly Stopped ?


क्या आप जानते हैं कि चाणक्य सीरियल बीच में ही सरकारी दबाव पर रोक दिया गया था।

90 के दशक में, चाणक्य एक बहुत ही लोकप्रिय सीरियल हुआ करता था। सीरियल का कथानक, एक्टिंग और इसमें दिया गया संदेश इतना प्रभावी था, कि लोग उसका बेसब्री से इंतजार किया करते थे।

इस पोस्ट के मूल लेखक JNU से पढ़े हुए हैं, वे भी इस सीरियल का बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे।

इस सीरियल में प्राचीन भारत के महान लोगों और हमारे इतिहास व संस्कृति के बारे में बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया था, कई ऐसे तथ्य थे जो हमें कभी इतिहास की किताबो में नहीं पढ़ाये गए, और ये तथ्य ऐसे थे जिन पर हर भारतीय को गर्व की अनुभूति होती। उस ज़माने में युवाओं को ये जानकारी पहली बार मिल रही थी, जिस वजह से उन्हें अपने इतिहास को लेकर जिज्ञासा भी हुई, और साथ ही इस इतिहास से जुड़ाव भी होने लगा, क्योंकि अब तक तो हमें बस हुमायूं से औरंगजेब और फिर अंग्रेजों की कहानियां ही पता थीं…..उससे पहले भारत मे 5000 सालों में क्या हुआ, कैसे हुआ, ये सब हमसे छुपाया गया एक एजेंडे के तहत।

अब जैसी की उम्मीद थी ही, ये सीरियल वामपंथी गैंग को पचा नहीं। 80 के दशक के अंत मे रामायण और महाभारत जैसे सीरियल अति लोकप्रिय हो चुके थे, इन सीरिअल्स की वजह से हिन्दू जनचेतना और राष्ट्रचेतना उभरने लगी थी……और इन दोनों ही चीजों से वामपंथियों को सख्त नफरत होती है। उन्हें लगा कि चाणक्य सीरियल ‘सेक्युलर’ भारत पर एक ‘हिन्दुत्व’ का हमला था। और फिर शुरू हुआ इस सीरियल के खिलाफ एक प्रोपगंडा का खेल।

R Champakalakshmi एक History की प्रोफेसर थी JNU में, उन्हें चाणक्य सीरियल में एक ‘प्रो हिन्दुत्व’ और ‘nationalist’ एजेंडा दिखा। उन्हें आपत्ति थी कि क्यों सीरियल में ‘भगवा’ झंडों का उपयोग किया जाता है, क्यों बारंबार ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाए जाते हैं……उन्हें ये सब आपत्तिजनक लगा।

उन्होंने बताया कि ऐसा कोई ऐतिहासिक तथ्य (उनके कुंठित ज्ञान के अनुसार) नहीं जो ये साबित करे कि उस समय मगध के लोग युद्ध में भगवा झंडों का उपयोग करते थे…..उन्होंने ये भी कहा कि ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाने का भी कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है।

चाणक्य सीरियल के निर्देशक Dr Chandra Prakash Dwivedi ने इन आपत्तियों को खारिज किया और उल्टा चम्पकलक्ष्मी से पूछा कि वे बताएं कि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की सेना उनके ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार किस रंग के झंडों का उपयोग करती है? और साथ ही इनके सबूत भी दिखाए।

जैसा कि उम्मीद थी, आज तक इन सवालों के कोई जवाब नहीं दिए गए हैं।

चम्पकलक्ष्मी ने क्या किया, उन्होंने वामपंथी एजेंडे के तहत भगवा झंडे पर सवाल उठाया, उन्होंने युद्धकाल में लगाये जाने वाले हमारे आराध्यों के नारों पर सवाल उठाए……क्यों?

क्योंकि वामपंथी हमेशा ही राष्ट्रीयता और धार्मिक प्रतीकों से चिढ़ते हैं. उन्हें चिढ़ है भगवा रंग से, क्योंकि ये रंग हमेशा से शौर्य का प्रतीक रहा है हमारी संस्कृति में। उन्हें चिढ़ है हमारे आराध्यों के नारों से, क्योंकि उन्हें पता है इन नारों को लगाने से हमारा जुड़ाव हमारे धर्म से और बढ़ता है।

वामपंथी ऐसे प्रतीकों का दोष आरएसएस की विचारधारा पर मढ़ देते हैं, और आम जनता के बीच गलत संदेश देने की कोशिश करते हैं, और ये आज़ादी के बाद से चला आ रहा है, सैंकड़ो हजारों ऐसे उदाहरण हैं।

JNU, DU और AMU में एक वामपंथी इतिहास माफिया कार्य करता है, इनका काम ही है हमारे इतिहास को विकृत करना, और अगर कोई सही इतिहास बताए तो उसे बदनाम करना और उसे बायकाट करना।

चाणक्य सीरियल के साथ भी यही हुआ। इस इतिहास माफिया ने अपनी मशीनरी (मीडिया, एकेडेमिया, सरकार, बॉलीवुड) का इस्तेमाल किया और एक धारणा को जन्म दिया। इन्होंने आरोप लगाया कि मगध साम्राज्य के समय (चौथी सदी), कोई भारत देश था ही नहीं, और ना लोगों मे देशभक्ति जैसी कोई भावना होती थी। इन लोगों ने चाणक्य सीरियल के निर्माताओं पर आरोप लगाया कि ये लोग झूठ फैला रहे हैं, और एक ‘वृहद भारतीय पहचान’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उस समय नहीं हुआ करती थी।

ABVP ने इस इतिहास माफिया को चुनाती दी, और कहा कि अंग्रेजों द्वारा कथित रूप से ‘भारत देश’ बनाने से पहले अगर कुछ नही था, तो 15वीं सदी में वास्कोडिगामा ‘किस’ जगह की खोज करने के लिए आया था?

वो भारत था या कोई अन्य देश था?

वो कौन सा देश था जिसका वर्णन मेगस्थनीज ने अपने यात्रा वृत्तांतों में किया था? क्या वो भारत देश था? या अलग थलग पड़े हुए राजे रजवाड़े थे?

उम्मीद के अनुसार, इन सवालों के कभी जवाब नहीं आये।

दरअसल समस्या वामपंथियों के दर्शन में है। मार्क्सिस्ट थ्योरी के अनुसार देश एक स्टेट होता है जिस पर कोई सरकार शासन करती है, और जनता उनके बनाये नियमों का पालन करती है।

सांस्कृतिक जुड़ाव और एकात्मकता की भावना से वामपंथ का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता।

एक ऐसा क्षेत्र जिसमें अलग अलग बोली बोलने वाले, अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हों, वृहद संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हों, और उन पर किसी का राज हो या ना हो, ऐसा क्षेत्र वामपंथियों के लिए ‘देश’ नहीं होता।

दरअसल यही तो भारत था, मुगलों और अंग्रेजो के आने से पहले।

सम्राट अशोक ने क्या किया? उन्होंने एक महान देश की स्थापना की, उन्होंने छोटे बड़े राज्यों को सम्मिलित किया और अंत मे अपना राज्य ही त्याग कर दिया और संन्यास ने लिया। राज्य बनाना और उस पर शासन करना उनका एजेंडा नही था, एजेंडा तो यही था कि इस भूमि पर सभी एक हो कर रहें, एक देश की तरह रहें, जिसे भारत कहा जाता था, और ये कोई आज की धारणा नहीं थी, 5000 साल से पुराना इतिहास उठा कर देख लीजिए, यही मिलेगा।

वामपंथियों के क्रियाकलाप यहीं नहीं रुके, एक समालोचक इकबाल मसूद तो एक कदम आगे ही बढ़ गए…..उन्होंने उस समय के माहौल को देखते हुए आरोप लगाया कि “आज के हिंसात्मक माहौल (90 के दशक के शुरुआती समय) में सीरियल में दिखाए गए ब्राह्मण (शिखा रखे हुए और सर मुंड़ाये हुए) और सीरियल में दिखाए गए वैदिक मंत्रों के उच्चारण से धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है, और लोगों के (हिन्दुओं) के मन में धर्म को लेकर उत्तेजना का संचार हो सकता है”।

वामपंथियों ने ऐसे सैंकड़ों हथकंडे अपनाए, और तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर जबरदस्त दबाव बनाया इस सीरियल को बन्द कराने के लिए, क्योंकि ये सीरियल उन इतिहास माफिया के बताए हुए प्रोपगंडे को तोड़ रहा था।

अंततः कांग्रेस की सरकार दबाव में आई, और इस सीरियल को बन्द कर दिया गया। इस तरह एक रिसर्च पर आधारित, alternative और असली इतिहास के दर्शन कराने वाला सीरियल, ‘सेकुलरिज्म’ की भेंट चढ़ गया।

#Urmila , Wife Of Shree Laxman उर्मिला कदाचित रामायण की सर्वाधिक उपेक्षित पात्र है।


#उर्मिला कदाचित रामायण की सर्वाधिक उपेक्षित पात्र है। जब भी रामायण की बात आती है तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम याद आते हैं जो अपने पिता के वचन के लिए १४ वर्षों के वन को चले गए थे। हमें देवी सीता याद आती हैं जो अपने पति के पीछे-पीछे वन की और चल दी। एक आदर्श भाई महापराक्रमी लक्ष्मण याद आते हैं जिन्होंने श्रीराम के लिए अपने जीवन का हर सुख त्याग दिया। भ्रातृ प्रेम की मिसाल भरत याद आते हैं जिन्होंने अयोध्या में एक वनवासी सा जीवन बिताया। महाज्ञानी और विश्वविजेता रावण याद आता है जो पंडित होते हुए भी राक्षस था। महावीर हनुमान, कुम्भकर्ण और मेघनाद याद आते हैं।

किन्तु इन सभी मुख्य पात्रों के बीच हम लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को भूल जाते हैं। उसके दुःख, त्याग और विरह वेदना को भूल जाते हैं जबकि शायद उसने देवी सीता से भी कहीं अधिक दुःख झेला। वनवास से वापस आने के बाद सीता उर्मिला से रोते हुए गले मिलती है और कहती है कि “हे सखि! तुम्हारे दुःख का ज्ञान भला लक्ष्मण को क्या होगा? मैं समझ सकती हूँ। १४ वर्ष मैंने चाहे वनवास में ही गुजारे किन्तु तब भी मुझे मेरे पति का सानिध्य प्राप्त था किन्तु तुम ने १४ वर्ष अपने पति की विरह में बिताये हैं इसीलिए तुम्हारा त्याग मेरे त्याग से कहीं अधिक बड़ा है।”

उर्मिला जनकपुरी के राजा महाराज जनक और रानी सुनैना की द्वितीय पुत्री और सीता की छोटी बहन थी। जब श्रीराम ने स्वयंवर जीत कर देवी सीता का वरण किया तो महर्षि विश्वामित्र के सुझाव पर महाराज जनक ने सीता के साथ अपनी दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ तथा अपने छोटे भाई क्षीरध्वज की पुत्रिओं मांडवी और श्रुतकीर्ति का विवाह क्रमशः भरत और शत्रुघ्न के साथ तय किया। चारो बहनें एक साथ ही जनकपुरी से अयोध्या आयीं। लक्ष्मण और उर्मिला के अंगद और चंद्रकेतु नामक दो पुत्र और सोमदा नाम की एक पुत्री हुए। वाल्मीकि रामायण में उन्हें रूप, गुण एवं तेज में सीता के समान ही कहा गया है जिसने अल्प समय में ही अयोध्या में सभी का ह्रदय जीत लिया।

जब श्रीराम को वनवास हुआ तो उनके लाख समझाने के बाद भी देवी सीता उनके साथ चलने को तैयार हुई। उधर लक्ष्मण तो राम के प्राण ही थे, वे कैसे उनका साथ छोड़ सकते थे। इसलिए वे भी वन चलने को तैयार हुए। जब उर्मिला को पता चला कि लक्ष्मण भी वन जाने को प्रस्तुत हैं तब वे भी वल्कल वस्त्र धारण कर उनके पास आई और वन चलने का अनुरोध किया। इसपर लक्ष्मण ने कहा “उर्मिले! तुम मेरी दुविधा को समझने का प्रयास करो। मेरे वन जाने का उद्देश्य केवल इतना है कि मैं वहाँ भैया और भाभी की सेवा कर सकूँ। तुम्हारे सानिध्य से मुझे सुख ही मिलेगा किन्तु तुम्हारे वहाँ होने पर मैं अपने इस कर्तव्य का वहाँ पूरी तरह से नहीं कर सकूँगा। अतः तुम्हे मेरी सौगंध है कि तुम यहीं रहकर मेरे वृद्ध माँ-बाप की सेवा करो।” इसपर उर्मिला रोते हुए कहती हैं कि “आपने मुझे अपनी सौगंध दे दी है तो अब मैं क्या कर सकती हूँ? किन्तु मैं ये सत्य कहती हूँ कि चौदह वर्षों के पश्चात जब आप वापस आएंगे तो मुझे जीवित नहीं देख पाएंगे। आपके विरह में इसी प्रकार रो-रो कर मैं अपने प्राण त्याग दूँगी।” तब लक्ष्मण फिर कहते हैं “प्रिये! अगर तुम इस प्रकार विलाप करोगी तो मैं किस प्रकार वन जा पाउँगा। इसलिए मैं तुम्हे एक और सौगंध देता हूँ कि मेरे लौट के आने तक तुम किसी भी परिस्थिति में रोना मत।” यही कारण था जब लक्ष्मण लौट कर आये तो उर्मिला कई दिनों तक रोती रही।

इस प्रसंग से आप देवी उर्मिला के भीतर का अंतर्द्वंद समझ सकते हैं। १४ वर्षों तक ना केवल वो अपने पति की विरह में जलती रही वरन अपने आसुंओं को भी रोक कर रखा। यहाँ तक कि जब महाराज दशरथ का स्वर्गवास हुआ तो भी वे लक्ष्मण को दिए अपने वचन के कारण रो ना सकी। जब भरत अयोध्या वापस आते हैं और उन्हें श्रीराम के वनवास का समाचार मिलता है तो वे अपनी माता कैकेयी की कड़े शब्दों में भर्त्स्यना करते हैं और उसके उपरांत तीनो माताओं, गुरुजनों और मंत्रियों को लेकर श्रीराम को वापस लेने के लिए चल देते हैं। उस समय उर्मिला उनके पास आती हैं और उन्हें भी अपने साथ ले चलने को कहती हैं। इस पर भरत उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि “उर्मिला! तुम इतना व्यथित क्यों होती हो? तुम्हारी व्यथा मैं समझ सकता हूँ किन्तु तुम्हे यात्रा का कष्ट सहन करने की क्या आवश्यकता है? बस कुछ ही दिनों की बात है, मैं तुम्हारे पति को साथ लेकर ही लौटूँगा। मैंने ये निश्चय किया है कि भैया, भाभी और लक्ष्मण को वापस लाने से मुझे विश्व की कोई शक्ति नहीं रोक सकती। अतः तुम अधीरता त्यागो और अपने पति के स्वागत की तैयारी करो।” जब श्रीराम अपने वचन की बाध्यता के कारण भरत के साथ आने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हैं तो भरत अयोध्या वापस आकर उर्मिला से कहते हैं “मैं सबसे अधिक तुम्हारा दोषी हूँ। मेरे ही हठ के कारण तुम्हारे पास अपने पति के सानिध्य का जो एक अवसर था वो तुम्हे प्राप्त नहीं हुआ अतः तुम मुझे क्षमा कर दो।”

उर्मिला के विषय में उसकी निद्रा बड़ी प्रसिद्द है जिसे “उर्मिला निद्रा” कहा जाता है। अपने १४ वर्ष के वनवास में लक्ष्मण एक रात्रि के लिए भी नहीं सोये। जब निद्रा देवी ने उनकी आँखों में प्रवेश किया तो उन्होंने निद्रा को अपने बाणों से बींध दिया। जब निद्रा देवी ने कहा कि उन्हें अपने हिस्से की निद्रा किसी और को देनी होगी तब लक्ष्मण ने अपनी निद्रा उर्मिला को दे दी। इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्मण वन में १४ वर्षों तक जागते रहे और उर्मिला अयोध्या में १४ वर्षों तक सोती रही। दक्षिण भारत में आज भी कुम्भकर्ण निद्रा के साथ-साथ उर्मिला निद्रा का भी जिक्र उन लोगों के लिए किया जाता है जिसे आसानी से जगाया ना सके। ये इसलिए भी जरुरी था कि रावण के पुत्र मेघनाद को ये वरदान प्राप्त था कि उसे केवल वही मार सकता है जो १४ वर्षों तक सोया ना हो। यही कारण था जब श्रीराम का राज्याभिषेक हो रहा था तो अपने वचन के अनुसार निद्रा देवी ने लक्ष्मण को घेरा और उनके हाथ से छत्र छूट गया। इसी कारण वे सो गए और राम का राज्याभिषेक नहीं देख पाए। उनके स्थान पर उर्मिला ने राज्याभिषेक देखा।

तो एक तरह से कहा जाये तो मेघनाद के वध में उर्मिला का भी उतना ही योगदान है जितना कि लक्ष्मण का। जब लक्ष्मण के हाँथों मेघनाद की मृत्यु हो गयी तो उसकी पत्नी सुलोचना वहाँ आती है और क्रोध पूर्वक लक्ष्मण से कहती है “हे महारथी! तुम इस भुलावे में मत रहना कि मेरे पति का वध तुमने किया है। ये तो दो सतियों के अपने भाग्य का परिणाम है।” यहाँ पर सुलोचना ने दूसरे सती के रूप में उर्मिला का ही सन्दर्भ दिया है। यहाँ एक प्रश्न और आता है कि अगर उर्मिला १४ वर्षों तक सोती रही तो उसने अपने पति के आदेशानुसार अपने कटुम्ब का ध्यान कब रखा। इसका जवाब हमें रामायण में ही मिलता है कि उर्मिला को ये वरदान था कि वो एक साथ तीन-तीन जगह उपस्थित हो सकती थी और तीन अलग-अलग कार्य कर सकती थी और उनका ही एक रूप १४ वर्षों तक सोता रहा।

उर्मिला के जीवन पर लिखा गया सबसे बड़ा महाकाव्य राष्ट्रकवि श्री मैथली शरण गुप्त द्वारा लिखा “साकेत” है जिसमे उर्मिला के दृष्टिकोण से पूरा रामायण लिखा गया है। इस महाकाव्य में उर्मिला के जीवन और उसके संघर्ष का विस्तृत वर्णण मिलता है। साकेत में एक विवरण मिलता है जब उनके पति को मेघनाद की शक्ति लगती है और उसी समय वे शत्रुघ्न के समीप जाकर कहती है कि जब तक पृथ्वी, सूर्य और चंद्र अटल है, उनके पति को कोई हानि नहीं हो सकती। उस समय के उनके रूप की तुलना कार्तिकेय के समीप खड़ी माता भवानी से की गयी है जिनके चेहरे से सूर्य का तेज फूट रहा था और उनका सिन्दूर साक्षात् अग्नि के सामान दिख रहा था। वन से लौटने के बाद लक्ष्मण उर्मिला से कहते हैं “मैं तो तुम्हारा दास हूँ।” तब उर्मिला हँसते हुए कहती है कि “दास किस लिए? मुझे दासी बनाने के लिए? इससे अच्छा तो आप मेरे देवता ही रहें और मुझे देवी रहने दें।” साकेत के अतिरिक्त बालकृष्ण शर्मा “नवीन” द्वारा लिखा काव्यखण्ड “उर्मिला” भी उल्लेखनीय है। गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने भी रामायण पर लिखे अपने लेख में रामायण में की गयी उर्मिला के उपेक्षा की कड़ी निंदा की है। राजस्थान के भरतपुर जिले में उर्मिला और लक्ष्मण का मंदिर है जिसे महाराजा बलवंत सिंह ने १८७० में बनवाया था। ऐसी पतिव्रता और महान स्त्री का जितना भी बखान किया जाये वो कम है और ये हमारे लिए गर्व का विषय है कि उर्मिला जैसी वीरांगना हमारे भारतभूमि पर जन्मी।

साभार

शरद सिंह काशी वाले

Religions have become more a mind controlling business


Religions have become more a mind controlling business where and when you trap the mind, one becomes not better than a robot thus your ruling becomes easier.

. It surpasses all the cultural barriers better than a sword or an arrow whereas Hinduism runs on true spiritual pillars to help humanity and achieve spiritual realms what universe has to offer.

This is the reason Hindus have no country of theirs own .To survive proudly in the future Hindu mindset must take over a new leaf!

नेक्रोफिलिया क्या है ? Necrophilia is the act of having sexual intercourse with a dead body, or the desire to do this.


नेक्रोफिलिया क्या है ?

नेक्रोफिलिया एक मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति शव यानी लाश यानी डेड बॉडी के साथ बलात्कार करता है

अगर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो सामान्य रूप से यह बीमारी हर 10 लाख व्यक्तियों में से एक को होती है, लेकिन इस्लाम में हर दसवां व्यक्ति नेक्रोफिलिया का शिकार है

यानी जिंदा तो जिंदा अगर लड़की की लाश भी मिल गई या खुद भी उसकी हत्या करनी पड़ी है तो भी बलात्कार जरूर करेंगे

मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने जो मौत चुनी उससे दुनिया स्तब्ध थी, आखिर क्यों एक औरत नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाएगी,लेकिन वो जानती थी कि जिसने मिस्र पर हमला किया है वे दरिंदो फ़ौज के लोग है

स्तन पर दंस मरवाने से पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा,तो कोई इंफेक्शन के डर उसकी मृत देह के साथ #बर्बरता नहीं कर पाएगा, साथ ही स्तन को मुँह में लेकर कुचल नहीं पाएगा, वहशियों का क्या वे किसी भी हद तक जा सकते हैं

फिर भी आपको बता दूं कि इतिहासकार कहते हैं कि उसके शव के साथ तीन हज़ार बार बलात्कार किया गया था

रानी पद्मावती ने भी लड़कर मरने के बजाय जौहर चुना,अभी जब पिछले दिनों फ़िल्म आई तो कितने लोगों ने कहा कि वो तो योद्धा थी,लड़कर क्यों नहीं मरी ? जौहर क्यों चुना ?

तो इसका स्प्ष्ट कारण था ख़िलजी और वैसे ही दरिंदो की फ़ौज,रानी जानती थी की अगर लड़ते हुए उसने और उसकी साथी औरतों ने जान दी तो उसके शरीर के साथ क्या होगा,बल्कि दुनिया इस असलियत को जानती है सिर्फ हमारे बच्चों से इसे छुपाया गया है,नेक्रोफिलिया

बस बेटियों को इतना ही सन्देश दिया कि देखो मेरी बहनों,जो पूरे विश्व में अपनी दरिंदगी और हवस के लिए प्रसिद्ध हैं, जो बकरी और कुतिया को नही छोड़ते…….जो शव को भी बिना बलात्कार नहीं छोड़ते

अगर तुम लोग इस चक्कर में आ गई कि सब एक जैसे नहीं होते तो याद कर लेना क्लियोपेट्रा और रानी पदमावती को

बस इतना सन्देश आजकल मैं मां बहन बेटियों को दे रहा हूँ

आप भी अपने बच्चों को आगाह करके बचा सकते हैं

बच्चे समझने को तैयार हैं

बस हम तैयार नहीं हैं सही शब्दों में समझाने के लिए

पाकिस्तान मीडिया में ऐसी ख़बरें वरसों से आती रहती हैं। वहाँ क़ब्र खोद कर ये बहशी बलात्कार करते हैं।

Sex is not Between two Legs.


SOME TIMES BY : SAM HINDU

Sex, in other words, is a moving goal post.

It is everywhere and nowhere.

It is not between your legs.

If it is anywhere in your body then it’s that spot in the middle of your back which you can’t quite reach to scratch.

They will always try to put it wherever you cannot get it, and no place else.

You can make love to a woman’s body all night long and she still might not be yours’ Make love to her mind and she is yours for ever.

depends on the people involved….some people just want the sex for the physical pleasure it gives them….when you are in love, it is as much emotional as it is physical….and the most wonderful sex involves the power of both…..

between the legs is all a guy needs….between the ears is what a lady wants

Very true, for it is what goes on between two ears that will determine how well it goes on between two legs.

Pretty much.. Like everything else it is a mental thing…

Gender can be felt throughout your entire body. In fact it probably reaches out beyond the boundaries of your body into your wardrobe and the clutter in your room. You leave bits and pieces of your gender everywhere as you move through the world.

And sex is not between the legs. It is never in just one place. It is genitals, it is chromosomes, it is hormones, it is body hair, it is the fucking pitch of your voice. They always tell us that it’s one thing, but then as soon as we get close, they move it.

Talk to a any person about sex and notice that they’ll almost always define your sex in terms of what you don’t have.

That surgery you didn’t get, or the fact that you needed that surgery in the first place.

The stubble you forgot to shave, or the beard that you can’t grow yet.

What your voice sounds like now, or the fact that it used to sound like something else.

Chromosomes you haven’t had tested. Structures in your brain that you will never get a look at.

यह_इतिहास_बताता_है_कि_अंग्रजों_का_दलाल_


#यह_इतिहास_बताता_है_कि_अंग्रजों_का_दलाल_

#चाटूकार_कौन_था.?

लन्दन के बकिंघम पैलेस में ब्रिटेन की महारानी/महाराजा से ‘नाइटहुड’ (सर) की उपाधि लेने की प्रक्रिया अत्यन्त अपमानजनक है। यह उपाधि लेनेवाले व्यक्ति को ब्रिटेन के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती है और इसके पश्चात् उसे महारानी/महाराजा के समक्ष सिर झुकाकर एक कुर्सी पर अपना दायाँ घुटना टिकाना पड़ता है।

ठीक इसी समय महारानी/महाराजा उपाधि लेनेवाले व्यक्ति की गरदन के पास दोनों कन्धों पर नंगी तलवार से स्पर्श करते हैं। तत्पश्चात् महारानी/महाराजा उपाधि लेनेवाले व्यक्ति को ‘नाइटहुड’ पदक देकर बधाई देते हैं।

यह प्रक्रिया सैकड़ों वर्ष पुरानी है और भारत में जिस जिसको यह उपाधि मिली वो सभी ‘सर’ इस प्रक्रिया से गुजरे थे।

ब्रिटेन अपने देश और अपने उपनिवेशों में अपने चाटुकारों को ब्रिटेन के प्रति निष्ठवान बनाने के लिए ऐसी अनेक उपाधियाँ देता रहा है। नाइटहुड (सर) की उपाधि उनमें सर्वोच्च होती थी।

गुलाम भारत में ब्रिटिश शासकों द्वारा देश के अनेक राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् आदि ब्रिटेन के प्रति वफादार रहने की शपथ लेने के बाद ही ‘नाइटहुड’ से सम्मानित किए गए थे।

इतिहास बताता है कि ब्रिटिश हुकूमत उसी को नाइटहुड (सर) की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित करती थी जिसे वो अपना वफादार चाटूकार दलाल मुखबिर मानती थी। हालांकि औपचारिक रूप से कहा यह जाता था कि व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए यह उपाधि दी जाती है। इसीलिए कभी कभी दिखावे के लिए कुछ वैज्ञानिकों चिकित्सकों शिक्षाविदों को भी यह उपाधि दे दी जाती थी।

कुछ अपवादों को छोड़कर देश के लगभग सभी राजा महाराजा नवाब और सेठ साहूकार आदि ब्रिटिश शासकों के तलुए चाटा करते थे। यह रहस्य किसी से छुपा नहीं है।

अतः उनको दरकिनार कर के आइए जानिए तत्कालीन राजनीति से जुड़े कुछ ऐसे #बड़े नामों को जिन्होंने ब्रिटेन के प्रति वफादार रहने की शपथ लेकर नाइटहुड (सर) की उपाधि ब्रिटिश दरबार में घुटना टेक कर ग्रहण की थी।

#पहला_नाम

सन 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष फिरोजशाह मेहता बने थे। मेहता जी ने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई इतने जुझारू तरीके से लड़ी थी कि 1904 में ब्रिटिश शासकों ने उनको नाइटहुड (सर) की उपाधि से सम्मानित किया था।

#दूसरा_नाम

सन 1900 में नारायण गणेश चंदावरकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना था। वह देश के प्रति कितना वफादार था और अंग्रेजों के प्रति कितना वफादार था यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साल भर बाद ही अंग्रेज़ी हुकूमत ने नारायण गणेश चंदावरकर को 1901 में बॉम्बे हाईकोर्ट का जज नियुक्त कर दिया था।

देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए बनी कांग्रेस के उस राष्ट्रीय अध्यक्ष नारायण गणेश चंदावरकर ने जज बनकर अंग्रेजों की इतनी गज़ब सेवा की कि 1910 में ब्रिटिश शासकों ने नारायण गणेश चंदावरकर को नाइटहुड (सर) की उपाधि से नवाजा था। 1913 में जज के पद से रिटायर होने के बाद यह चंदावरकर फिर कांग्रेस का बड़ा नेता बन गया था।

#तीसरा_नाम

1907 और 1908 में लगातार 2 बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रासबिहारी घोष ने कांग्रेस के झंडे तले अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई इतनी जोरदारी और ईमानदारी से लड़ी थी कि सन 1915 में ब्रिटिश शासकों ने रासबिहारी घोष को नाइटहुड (सर) की उपाधि से सम्मानित किया था।

#चौथा_नाम

सन 1897 में अंग्रेज़ सरकार का एडवोकेट जनरल चेत्तूर संकरन नायर कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना था। नायर ने कांग्रेस के झंडे तले देश की आज़ादी की लड़ाई इतने भीषण तरीके से लड़ी थी कि अंग्रेजों ने 1904 में उसको कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर की तथा 1912 में नाइटहुड (सर) की उपाधि देकर समान्नित तो किया ही था साथ ही साथ 1908 में ब्रिटिश सरकार ने उसे मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया था। 1915 में वह उसी पद से रिटायर हुआ था।

यह👆🏼चार नाम किसी छोटे मोटे कांग्रेसी नेता के नहीं बल्कि कांग्रेस के उन राष्ट्रीय अध्यक्षों के हैं जिन्होंने ब्रिटिश दरबार में घुटने टेक कर ब्रिटेन के प्रति वफ़ादार रहने की कसम खायी थी।

अतः आज यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पेशे से वकील इन राजनेताओं ने ऐसा कौन सा उल्लेखनीय कार्य किया था जिससे ब्रिटिश सरकार इतनी गदगद हो गयी थी कि उन्हें नाइटहुड (सर) की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित कर डाला था.?

अंग्रेजों के वफादार रहे कुछ और नामों के ऐसे उदाहरण भी हैं जिनको आजादी मिलने के बाद महत्वपूर्ण पद सौंप दिए गए।

आइए उनमें से कुछ नामों से आज आप भी परिचित होइए…

पहला नाम है फ़ज़ल अली का। इसे अंग्रेजों ने पहले खान साहिब फिर खान बहादुर की उपाधि दी और फिर 1942 में नाइटहुड (सर) की उपाधि से तब नवाजा गया था जब देश “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आन्दोलन की तैयारी कर रहा था।

लेकिन 1947 में आज़ादी मिलने के बाद नेहरू सरकार ने इस फ़ज़ल अली को उड़ीसा का गवर्नर बनाया फिर असम का गवर्नर बनाया। फ़ज़ल अली 1959 में असम के गवर्नर के रूप में ही मरा था।

एन गोपालस्वामी अय्यंगर नाम के एक नौकरशाह की ब्रिटेन के प्रति वफादारी से अंग्रेज़ हुक्मरान इतना गदगद थे कि अंग्रेजों ने 1941 में उसको नाइटहुड (सर) की उपाधि से तो नवाजा ही था साथ ही साथ दीवान बहादुर, आर्डर ऑफ दी इंडियन एम्पायर, कम्पेनियन ऑफ दी ऑर्डर ऑफ दी स्टार ऑफ इंडिया सरीखीे 7 अन्य उपाधियों से भी नवाजा था।

1947 में देश को आज़ादी मिलते ही बनी पहली कांग्रेस सरकार का प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस गोपालस्वामी अय्यंगर पर इतना मेहरबान हुआ था कि उसे बिना विभाग का मंत्री बनाकर अपनी केबिनेट में जगह दी फिर 1948 से 1952 तक देश का पहला रेलमंत्री नियुक्त किया तत्पश्चात 1952 में उसे देश के रक्षामंत्री सरीखा महत्वपूर्ण पद सौंप दिया था।

पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी इसलिए बस इतने उदाहरण ही पर्याप्त हैं। क्योंकि अपने चाटूकार वफादारों दलेलौं को ब्रिटिश हुक्मरान राय बहादुर, साहेब बहादुर, खान बहादुर सरीखी उपाधियों से भी सम्मानित करती थी। उपरोक्त उपाधि पाने वालों की सूची में दर्ज तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं के नाम भी यदि लिखूंगा तो पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी।

अतः केवल सर्वोच्च उपाधि नाइटहुड (सर) के इन👆🏼उदाहरणों के उल्लेख के साथ ही यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि 1947 से पहले ब्रिटिश हुकूमत का वफादार होने का मतलब ही हिंदुस्तान का गद्दार होना होता था।

अतः कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि ब्रिटिश शासकों ने RSS के, हिन्दू महासभा के कितने नेताओं/कार्यकर्ताओं को नाइटहुड (सर) या राय बहादुर, साहेब बहादुर, खान बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था.?

मित्रों इसका जवाब शून्य ही है।

अतः इस सच्चाई व ऊपर उल्लिखित नाइटहुड (सर) की उपाधि पाए नामों को पढ़कर यह आप स्वयं तय कर लीजिए कि 1947 से पहले अंग्रेजों का वफादार दलाल मुखबिर कौन था.?

नीचे दाहिना घुटना टिकाकर सम्मान लेने की प्रक्रिया का छायाचित्र.

Jay Bhim , A truth to know


दलितमुस्लिम गठजोड़ और जय भीमजय मीम का नारा देने वाले पहले दलित शुभचिंतक थे जोगेंद्रनाथ मण्डल,क्योंकि इनको लगता था कि दलित भाइयों का हित अन्य हिनुओं के साथ रहकर नही बल्कि मुल्लों में साथ रहकर पूरा होगा।

मुस्लिम लीग से समझौते के तहत इन्होंने अपने दलित अनुयायियों को पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने का आदेश दिया था।अविभाजित भारत के पूर्वी बंगाल और सिलहट (आधुनिक बांग्लादेश) में करीब 40 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी, जिन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में वोट किया और मुस्लिम लीग, मण्डल के सहयोग से भारत का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने मे सफल हुआ।

मंडल दलितों की एक बड़ी संख्या लेकर पाकिस्तान गए. जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के #पहले_कानून_मंत्री बने।

जोगेंद्र नाथ मंडल ने सोचा अब पाकिस्तान बन गया है, दलितों के मज़े होंगे। पर हुआ उल्टा। संगठित आक्रामक समाज धर्मांतरण पर तुल गया।परिवारजनों के साथ दुर्व्यवहार और आये दिन दंगे होने लगे।

अब मुस्लिम लीग को वैसे भी #जय_भीम_जय_मीम दोस्ती का ढोंग करने की ज़रूरत नहीं रह गयी थी।उनके लिए हर गैरमुस्लिम काफिर है।पूर्वी पाकिस्तान में मण्डल की अहमियत धीरेधीरे खत्म हो चुकी थी।अत्याचार शुरू हो चुके थे।30% आबादी की जानमालइज्जत खतरे मे थी।

पाकिस्तान में सिर्फ एक दिन 20 फरवरी 1950 को 10,000 से ऊपर दलित मारे गए। ये बात किसी संघी किताब में नहीं बल्कि खुद जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में लिखी हैं।

जोगेन्द्र नाथ ने कार्यवाही हेतु बारबार चिट्ठियां लिखीं, पर पाक सरकार को तो कुछ करना था, किया। आखिर उन्हें समझ में गया कि उन्होंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है।

मंडल को खुद लगा कि अब उनकी जान पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं है और वह अपने दलितों को पाकिस्तान में छोड़ के भाग निकले और पश्चिम बंगाल में कर गुमनामी की जिंदगी जीते हुए कुत्ते की मौत मरे।जोगेंद्रनाथन मण्डल को #लाखों_दलितों_का_हत्यारा कहा जाता है।

आज के किसी भी कथित दलित शुभचिंतक के पोस्ट पर एक बार लिख दीजिये की सर भारत के पहले जागरूक,सचेत और शिक्षित दलित जोगेंद्रनाथ मण्डल सर के बारे में भी कभी कुछ लिखिए तो वे या तो आपको गाली देकर ब्लॉक कर देंगे या सीधे ब्लॉक कर देंगे,लेकिन ब्लॉक तो करेंगे ही,ये आज़माया हुआ है😋